Monday 24 June 2019

21 भारतीय शहरों को बिल्कुल पानी नहीं मिलेगा

चार शहर -- दिल्ली, गुड़गाँव, मेरठ और फरीदाबाद -- सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।'

Residents line up to fill containers with drinking water from a municipal tanker in New Delhi. Photograph: Anushree Fadnavis/Reuters

फोटो: नयी दिल्ली में नगरपालिका के टैंकर से पीने का पानी भरने के लिये कतार में खड़े निवासी।
भारत में अप्रत्याशित रूप से पानी से जुड़ी आपातकालीन स्थिति सामने आ रही है।
कई शहर पानी की कमी से जूझ रहे हैं और छोटे शहरों में टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है।
गाँवों में हालात और भी ख़राब हैं, जहाँ से कई लोग पानी की तलाश में शहरों का रुख़ कर रहे हैं।
"नागपुर में आज वेयोलिया इंडिया नामक एक फ्रेंच कंपनी पानी प्रदान कर रही है... वेयोलिया इंडिया अब भारत के 18 शहरों में पानी की आपूर्ति करना चाहती है। जल्द ही, वो लोग देश के पानी पर कब्ज़ा कर लेंगे," मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह ने, नीचे, रिडिफ.कॉम के सैयद फिरदौस अशरफ़ को बताया।
पानी की कमी जैसी गंभीर समस्या का कोई स्थायी समाधान क्यों नहीं है? हमसे कहाँ ग़लती हुई है?
किसी भी राजनैतिक पार्टी का मैनिफेस्टो उठा कर देख लीजिये, आप देखेंगे कि उनमें से कोई भी पानी की बात नहीं करता।
उनकी आँखों के आँसू सूख चुके हैं और वो पानी की बात तभी करते हैं जब उन्हें पानी का निजीकरण करना हो।
एक पार्टी अपने मैनिफेस्टो में कहती है कि वह हर नागरिक के घर पर नल का पानी उपलब्ध करायेगी।
लेकिन यह कैसे संभव है?
पानी बचा ही नहीं है।
ऐसी स्थिति में, आप जल-नल (नल में पानी) के ऐसे वादे कैसे कर सकते हैं?
यह जल-नल सिर्फ प्राइवेट कंपनियों के लिये है।
इस समस्या के समाधान के लिये पिछली सरकारों ने क्या किया था?
जब पानी एक प्राथमिकता थी, तब पिछली सरकारों ने बड़े डैम बनाये थे।
महाराष्ट्र का उदाहरण ले लीजिये, जहाँ 42 बड़े डैम हैं। राज्य के नेता गन्ने की खेती से पैसे बनाने की सोच रखते थे।
महाराष्ट्र में खेती का औद्योगिकीकरण किया गया था।
कृषि एक कृषि व्यापार बन गयी।
आज महाराष्ट्र में गन्ने की खेती के लिये 84 फ़ीसदी पानी ज़मीन से लिया जा रहा है।
इससे खतरनाक बात और क्या हो सकती है?

देश के नेताओं के पास पानी को लेकर कोई योजना नहीं है।
उनकी योजना है बस पानी के नाम पर वोट मांगना।
नेता पानी के मुद्दे को बस प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स द्वारा सुलझाना चाहते हैं।
ये निजी ठेकेदार कभी पानी की समस्या का समाधान नहीं ढूंढ सकते।
पानी की समस्या का समाधान सिर्फ समाज कर सकता है।
लेकिन अगर लोग इस समस्या के समाधान के लिये एकजुट नहीं हुए, तो इसका समाधान कभी नहीं होगा।
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी - शिवसेना द्वारा शुरू की गयी जलयुक्त शिवर योजना के बारे में आपका क्या कहना है?
यह एक अच्छा उदाहरण है।
जलयुक्त शिवार पहले दो साल में एक आदर्श कार्यक्रम था।
इसे वैज्ञानिक सोच के साथ शुरू किया गया था।
पूरे महाराष्ट्र के गाँववासियों ने पानी की समस्या के समाधान के लिये अपनी जेब से 350 करोड़ रुपये खर्च किये।
लेकिन, जब सरकार ने जलयुक्त शिवार का काम प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स को देना शुरू किया, तब से लोगों ने पैसे देने की जगह काम करना भी बंद कर दिया।
उन्हें समझ में आ गया कि कॉन्ट्रैक्टर पानी के नाम पर पैसों की हेरा-फेरी करने वाले हैं।
जलयुक्त शिवार अब असफल हो चुका है।
महाराष्ट्र सरकार प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स को क्यों लायी?
क्योंकि वो चाहते थे कि कॉन्ट्रैक्टर पैसे बनायें और चुनाव के समय उन्हें लौटायें।
मुझे नहीं पता कि यह किसका सुझाव था, मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस का या उनके किसी मंत्री का।
लेकिन ठीकरा तो फडनवीस के सिर पर ही फूटेगा।
जलयुक्त शिवार कार्यक्रम में कॉन्ट्रैक्टर्स के शामिल होने पर आपने विरोध क्यों नहीं किया?
मैंने फडनवीस को इसकी जानकारी दी थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया।
मेरा काम लड़ना नहीं, शांति से काम करना है।
जब तक फडनवीस मेरी सुनते थे, मैं उनके लिये काम करता था।
लेकिन जब उन्होंने सुनना बंद कर दिया, तब मैं घर पर बैठ गया।
आज भी मैं महाराष्ट्र के सांगली जिले में काम करता हूं, जहाँ चार साल सूखा पड़ने के बावजूद हमने सुनिश्चित किया कि आगरानी और महाकाली जैसी नदियों से जल की आपूर्ति हो सके।
भारत में पानी की समस्या कितनी गंभीर है?  
बहुत ही जल्द, भारत के 21 शहरों में नल का पानी बिल्कुल नहीं मिलेगा (जब नल सूख जायेंगे और लोगों को पानी के लिये कतार में लगना पड़ेगा)
अगर सरकार ने जल्द कोई कदम नहीं उठाया, तो भारत के 21 शहरों में केप टाउन की तरह ही पानी नहीं होगा।
चार शहर -- दिल्ली, गुड़गाँव, मेरठ और फ़रीदाबाद -- सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
उनके पास बिल्कुल पानी नहीं होगा।
A woman fetches water from an opening made to filter water next to a polluted lake in Maharashtra's Thane district. Photograph: Prashant Waydande/Reuters
फोटो: महाराष्ट्र के ठाणे जिलें में एक प्रदूषित झील के बगल में बनाये गये गड्ढे से पानी लेती महिला।
गाँवों में स्थिति कैसी है?
गाँवों में रहने वाले लोग गाँव छोड़ कर शहरों का रुख़ कर रहे हैं।
भारत का भविष्य एक खतरनाक दिशा में जा रहा है।
जब गाँव के लोग गाँव छोड़ कर शहर जाने लगें, तो शहरों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
ये चीज़ें किसी भी राजनैतिक पार्टी के मैनिफेस्टो में नहीं हैं।
बरसात कम होने पर सरकार क्या कर सकती है?
कम बरसात प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव-निर्मित (समस्या) है।
भारत में पानी की कमी एक मानवनिर्मित समस्या है।
उन्होंने पहाड़ों के पेड़ काट दिये हैं।
धरती पर हरियाली बची नहीं है।
ऐसा होने पर, उन क्षेत्रों में बादल तो दिखेंगे, लेकिन हवा का दबाव कम होने के कारण बारिश नहीं होगी।
जब भी मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है, प्रकृति मनुष्य को सबक ज़रूर सिखाती है।
कहीं भारी बरसात, तो कहीं सूखा -- भारत ऐसी स्थिति का सामना कैसे कर सकता है?
जब पहाड़ों पर बरसात होती है, तो उसे वहीं रोक दिया जाना चाहिये और पानी को भूमिगत ऐक्विफर्स में डाला जाना चाहिये, ताकि भूक्षरण न हो पाये।
पानी में नमी रहने के कारण हरियाली दिखाई देगी।
मिट्टी बह कर नदियों में जमा नहीं होगी।
वर्तमान में भारत में एक साथ कई जगह बाढ़ और सूखे की स्थिति सामने आती है, क्योंकि हम बरसात के पानी का बहाव नियंत्रित नहीं करते।
जब पानी बहुत तेज़ी से बहता है, तो मिट्टी का क्षरण होता है।
जहाँ मिट्टी है ही नहीं, वैसी जगहों पर अकाल पड़ जाता है, जैसे मराठवाड़ा।
जहाँ मिट्टी है, वहाँ मिट्टी बह कर नदियों में जमा हो जाती है। जिससे नदियाँ भर जाती हैं और बाढ़ आ जाती है।
अगर हम भारत में बाढ़ और अकाल को रोकना चाहते हैं, तो हमें बरसात के पानी के बहाव पर नियंत्रण रखना होगा।
भारत को बाढ़-मुक्त करने के लिये, हमें पानी के बहाव को धीमा करना होगा।
हमें सुनिश्चित करना होगा कि पानी पैदल चले, और जब यह पैदल चलने लगे, तो उसे रेंगने की रफ़्तार में लाया जा सकता है।
और जब पानी रेंगने लगेगा, तो उस पानी को धरती के पेट में डाला जा सकेगा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में समस्या के समाधान के लिये नदियों के पानी को जोड़ने की बात चल रही थी। क्या इससे समाधान संभव है?
भारत में, संविधान के अनुसार, पानी के अधिकार तीन स्तरों पर हैं।
सबसे पहला पानी का अधिकार है नदियों का बहाव, जो भारत सरकार तय करती है।
दूसरा है बरसात का पानी, जिसके अधिकार राज्य सरकार के पास हैं।
तीसरा, पंचायत और नगरपालिका के अपने-अपने क्षेत्रों में बरसात के पानी पर उनका अधिकार होता है।
ये तीनों स्तर हमेशा अलग रहेंगे।
आज देश का कोई भी मुख्यमंत्री नहीं कहेगा कि उसके पास पानी ज़्यादा है।
तो फिर कोई भी सरकार कैसे कह सकती है कि नदियों को जोड़ा जायेगा और सबको पानी दिया जायेगा।
क्या यह सच है कि हम 100 साल पहले के मुकाबले छः गुना ज़्यादा पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं?
हमारे जीने का अंदाज़ बदल गया है।
100 साल पहले जब मनुष्य शौच या पेशाब के लिये जाता था, तो वो कभी 15 लीटर पानी बर्बाद नहीं करता था।
अब जब हम टॉयलेट जाकर फ़्लश करते हैं, हम हर फ़्लश में 6 लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं।
यानि कि पानी के इस्तेमाल का तरीका पिछले 100 सालों में ख़राब हो गया है।
पहले, मनुष्य अनुशासन के साथ पानी का इस्तेमाल करता था, ऐसा अब नहीं है।
भारत पानी से जुड़े अनुशासन में दुनिया का गुरू था।
हमारे घर मेहमान आने पर हम उन्हें पानी देते हैं, यूरोप की तरह शराब नहीं।
पानी का सम्मान करना हमारी संस्कृति का हिस्सा है।
हमने हमेशा इसे भगवान का दर्जा दिया है।
दुर्भाग्यवश, जब से हम अपने भगवान को ईंट-पत्थर के घरों में ताले में बंद रखने लगे, तभी से पानी का दुरुपयोग शुरू हुआ।
पानी का यह दुरुपयोग बहुत ही ख़तरनाक है।
Women carry pitchers filled with water. Photograph: Prashant Waydande/Reuters
फोटो: महिलाऍं पानी से भरे मटकों के साथ। 
कहा जा रहा है कि भारत में पानी की मांग 2030 तक चरम सीमा पर पहुंच जायेगी। क्या यह सच है?
हाँ, पानी की मांग बढ़ती जा रही है।
समय के साथ-साथ यह मांग और भी बढ़ेगी।
उतने पानी के लिये हमें अपनी ज़िंदग़ी में 6 उपाय अपनाने होंगे - सम्मान, कमी, छोड़ना, पुनर्चक्रण करना और पानी से प्रकृति को नया जीवन देना।
भारत की यह स्वदेशी सोच पानी की गहरी समझ पर आधारित है।
हम एक नियम का पालन करते थे, कि हम ज़िंदग़ी भर में जितने पानी का इस्तेमाल करेंगे, मरने से पहले उतना प्रकृति को लौटा कर जायेंगे।
इसलिये हम कम पानी का इस्तेमाल करते थे।
शहर में चार लोगों के परिवार में पानी की खपत कितनी होनी चाहिये?
अगर हम बड़े पैमाने पर इंग्लिश टॉयलेट बनाये जायेंगे, तो हम एक व्यक्ति के लिये 40 लीटर की अधिकतम सीमा से काम नहीं चला पायेंगे।
लेकिन अगर हम 6 उपायों के सिद्धांत को अपने जीवन में लागू करें, तो 40 लीटर पानी एक आदमी के लिये काफ़ी होगा।
चार लोगों के परिवार के लिये 160 लीटर पानी काफ़ी है।
कम पानी का इस्तेमाल करने के लिये, हमें अपनी जीवनशैली बदलनी होगी।
दुर्भाग्यवश आज हमारा समाज सरकार से पानी मांगता है।
जबकि समाज अपने लिये पानी की व्यवस्था करना भूल चुका है।
पुराने दिनों में, कोई भी राजा अपनी प्रजा को पानी नहीं देता था।
राजा, महाजन (शिक्षित लोग) और आम जनता साथ मिलकर सुनिश्चित करते थे कि समाज में पर्याप्त पानी हो।
कम पानी का इस्तेमाल एक समाजवादी विचारधारा है, जबकि खपत पूंजीवाद की हक़ीकत है।
भारत में, पहले ट्रस्टी सिस्टम हुआ करता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के साथ भारत में पूंजीवाद लेकर आयी।
आज नागपुर में, वेयोलिया इंडिया नामक फ्रेंच कंपनी पानी प्रदान कर रही है। यह एक प्राइवेट कंपनी है।
जब मैंने नागपुर के स्थानीय नेताओं से बात की, तो उन्होंने बताया कि वेयोलिया इंडिया सिर्फ ग्राहकों को पानी से जुड़ी सेवाऍं प्रदान कर रही है।
नेताओं की ज़ुबान बदलना अच्छा संकेत नहीं है।
वेयोलिया इंडिया अब भारत के 18 शहरों में पानी देना चाहती है। जल्द ही देश के पानी पर इन लोगों का कब्ज़ा होगा।
मैं पानी के इस निजीकरण के ख़िलाफ़ लड़ना चाहता हूं।
लेकिन जब बरसात होती है, तो लोग सूखे को भूल जाते हैं।
मैं नहीं भूलता, सिर्फ नेता भूलते हैं।
भविष्य में सत्ता का खेल पानी के मुद्दे पर खेला जायेगा।
आप देखते जाइये, मल्टीनेशनल कंपनियाँ इसमें बड़ी भूमिका निभाने वाली हैं।

Tuesday 11 December 2018

Naturopathy


Naturopathy is a system of working towards the cure of diseases without using medicines.  It is an ancient and traditional science which integrates the physical, mental, and spiritual aspects of our natural constitution. Naturopathy has the capacity to prevent and in some cases also cure the disease. The main principles of Naturopathy are astounding. First, the reasons and remedies of all diseases are the same; ailments develop due to the presence of intoxicants which are removed. Second, the intoxicants cause diseases, not bacteria and viruses which simply feed off them. Third, nature itself is the best ‘doctor’, the patient is cured, not the ailment. All levels of the body are treated simultaneously and holistically. Finally, no medicines are used because Naturopathy is a superb medicine in itself. The principal aim of Naturopathy is to teach people the art of healthy living by changing their daily routine and habits—this not only cures the disease but makes our bodies strong and glowing. o, what are the techniques that are involved? There are four classifications: food, mud, water and massage therapies. In food therapy, the idea is to consume what we eat in its natural form as much as possible as it is by itself a medicine. This mainly includes fresh fruit, fresh leafy green vegetables, and sprouts; and there are different combinations of purifying, strengthening, or pacifying foods. These must be consumed in the correct proportion, and the stomach left a little empty. To extract intoxicants from the body, both mud baths and mud packs are used, particularly for ailments such as high blood pressure, tension headaches, anxiety, constipation, plus gastric and skin disorders. There are several main types of water therapy using clean fresh and cool water; and after this type of a treatment, the body feels refreshed and energized. The methods we use have efficacious results for a wide variety of ailments: a hip bath improves the efficiency of the liver, large intestine, stomach, and kidneys; a full steam bath opens the skin’s pores drawing out harmful intoxicants; a hot foot bath helps with asthma, knee pain, headache, sleeplessness, and menstrual irregularities; in addition, there is a full body water massage, a spine bath, hot and cold wraps, and enemas, all of these to get rid of the toxins we do not  want. Finally there is a massage therapy which increases the blood flow, removing stiffness, weariness, and pain from muscles and this can work in conjunction with some of the other naturopathic therapies. It is true that Naturopathy can be used to help cure and relieve many of today’s illnesses and diseases. It can also be used by anyone who wishes to simply enjoy the feeling of relaxing. This, no doubt, is therapeutic in itself. Naturopathy is always helpful for whatever be the reason.

Link : https://biswaroop.com/
           http://naturallifestyle.in/

Monday 5 June 2017


Aek Pahal   

          Aap sabhi se aek gujarish hai ki kabhi bhi kisi thela ya riksha wale se mol-bhaw na kare. Aare do-char rupye bacha ke kon se aamir ban jaoge. Lekin us garib ki dua lagegi jo itani mehnat se apane parivar ka kharcha udane ki koshish kar rha hai. Jara shochiye hum kitane aram se bade-2 hotel, cinema ya moll me bina mol-bhaw ke rupeya de dete hai, jabki wo pahle se hi kaphi ameer hai. Apani shoch badliye...




Kewal gossip karne se hi kuch nahi badlega, Please pahle khud ko change karo. Kahi se to surwat ho tabhi hum uan garib logo ki sachhi halp kar sakte hai. Aaye aek choti si koshish karte hai aur aaj se hi man bana le ki aab hum ean logo se mol-bhaw nahi karege..
Thankyou.

Tuesday 24 January 2017

आइए चलें, भारत की सबसे खूबसूरत, दिलकश प्राकृतिक जगह की सैर पर

भारत के सबसे खूबसूरत प्राकृतिक स्वर्ग की सैर 

आज चलते हैं भारत के सबसे खूबसूरत प्रकृति के करीब। प्रकृति के ये प्यारे सी चीजें झील, झरना, समुद्र, हरियाली, खुबसूरत पहाड जहां ये सारे नजारें हो तो दिल करता उन्हीं नजारों में हम सब खों जाएं, शहर के इस चिल्ल पों से दूर । तो चलिए चलते हैं प्रकृति के करीब



1. नोहकालिकाई फॉल्स, चेरापूंजी (Noakhali Falls, Cherrapunji) :
नोहकलिकाई फॉल्स भारत के मेघालय में स्थित है। चेरापूंजी के नज़दीक यह एक आकर्षक झरना है। चेरापूंजी को सबसे ज्यादा बारिश के लिए जाना जाता है और इस झरने के जल का स्रोत यही बारिश है। यह झरना 335 मीटर ऊंचाई से गिरता है। यहां झरने के नीचे एक तालाब बना हुआ है, जिसमें गिरता हुआ पानी हरे रंग का दिखाई देता है।


2-मुन्नार के चाय बागान और पहाड़ियां, केरल (Munnar Tea Gardens, Kerala) :
यहां हर साल हज़ारों पर्यटक आते हैं। जिंदगी की भागदौड़ और प्रदूषण से दूर यह जगह लोगों को अपनी ओर खींचता है। 12000 हेक्टेयर में फैले चाय के खूबसूरत बागान यहां की खासियत है। दक्षिण भारत की अधिकतर जायकेदार चाय इन्हीं बागानों से आती हैं। चाय के उत्पादन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए चाय संग्रहालय है जहां इससे संबधित सभी तस्वीरें और सूचनाएं मिलती हैं। इसके अतिरिक्त यहां वन्य जीवन को करीब से देखा जा सकता है।
3- स्टोक रंज, लद्दाख (Stok Range Ladakh) :
लद्दाख जम्मू और कश्मीर में स्थित है। यह उत्तर-पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्रम में आता है,जहां का अधिकांश धरातल कृषि योग्य नहीं है। 11, 845 फुट की ऊंचाई पर, स्टोक रेंज में स्टोक कांगड़ी, पर्वतारोहियों के बीच एक लोकप्रिय पर्वत है। दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर, एवरेस्ट पर्वत की चढ़ाई करने से पहले, स्टोक रेंज पर चढ़ाई एक अभ्यास मानी जाती है।
4- नुब्रा वैली, लद्दाख (Nubra Valley Ladakh) :
नुब्रा वैली का मतलब ही है ‘फूलों की घाटी’। नुब्रा वैली जाने के लिए आपको इनर लाइन परमिट की आवश्यकता होगी, क्योंकि यहां तक आने के लिए खरदुंग ला पास को पार करना होगा जो दुनिया का सबसे ऊंचा पास है। हुन्डर और पनामिक नुब्रा वैली के दो मुख्य आकर्षण हैं।
हुन्डर को ‘आकाश में रेगिस्तान’ भी कहा जाता है। यही एक ऐसी जगह है जहां आप दो कूबड़ वाले ऊंट की सवारी कर पाएंगे। पनामिक में सल्फर स्प्रिंग और मठों के नज़ारे ले पाएंगे।
5- माथेरन (Matheran) :
माथेरन ब्रिटिश राज में गर्मियों में छुट्टियां बीताने का लोकप्रिय स्थान बन चुका था। यह मुंबई में पदस्थापित ब्रिटिश अधिकारियों की बड़ी पसंद था। इंडिया का यह सबसे छोटा हिल स्टेशन मुंबई से 90 कि.मी. की दूरी पर है। यहां से सूर्यास्त और सूर्योदय का नज़ारा देखने लायक है। यह समुद्र तल से 2625 फुट की ऊंचाई पर पश्चिमी घाट पर स्थित है।
6- नन्दा देवी (Nanda Devi) :
नन्दा देवी पर्वत भारत के उत्तराखण्ड राज्य में अंतर्गत गढ़वाल ज़िले में स्थित है। यह पर्वत हिमालय के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र का प्रसिद्ध पर्वतशिखर है। इसकी चमोली से दूरी 32 मील पूर्व है।
इस पर्वत शिखर में दो जुड़वां चोटियां हैं, जिनमें से नंदादेवी चोटी समुद्रतल से 25645 फुट ऊंची है। हिंदुओं का विश्वास है कि शंकर भगवान की पत्नी नंद इसी पर्वत पर निवास करती हैं।
7- मिज़ोरम (Mijoram) :
मिज़ोरम में प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है। यहां की पहाड़ियां घने सदाबहार वनों से ढकी हैं, जिनमें चंपक, आयरन वुड और गुर्जुन जैसे मूल्यवान इमारती लकड़ी के वृक्ष पाए जाते हैं। वास्तविक वनाच्छादित क्षेत्र 18,775 वर्ग कि.मी. है, जो भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 89 प्रतिशत है। इन जंगलों में हाथी, बाघ, भालू, हिरन और जंगली भैंसों समेत कई जंतुओं का पर्यावास है।
8- लोनार सरोवर, महाराष्ट्र (Lonar Lake, Maharashtra) :
लोनार झील महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा ज़िले में स्थित एक खारे पानी की झील है। यह आकाशीय उल्का पिंड की टक्कर से निर्मित पहली झील है। इसका खारा पानी इस बात का प्रतीक है कि कभी यहां समुद्र था। इसके बनते वक्त क़रीब दस लाख टन के उल्का पिंड की टकराहट हुई। क़रीब 1.8 किलोमीटर व्यास की इस उल्कीय झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है।आज भी वैज्ञानिकों में इस विषय पर गहन शोध जारी है कि लोनार में जो टक्कर हुई,वो उल्का पिंड और पृथ्वी के बीच हुई या फिर कोई ग्रह पृथ्वी से टकराया था। उस वक्त वो तीन हिस्सों में टूट चुका था और उसने लोनार के अलावा अन्य दो जगहों पर भी झील बना दी।
9- यूमथांग वैली, सिक्किम (Yumthang Valley, Sikkim) :
यूमथांग को सिक्किम का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। समुद्र तल से करीब 3564 मीटर्स की ऊंचाई पर स्थित यह इलाका, फूलों की घाटी के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। यह घाटी उत्तर सिक्किम में है और हिमालय पर्वतों से घिरी हुई है।
यहां जानवर घास चरने भी आते हैं। उत्तर जिला सभी जिलों में सबसे खूबसूरत है। कंचनजंघा के पर्वत शिखर की गोद में लिपटा यह जिला काफी ऊंचाई पर स्थित है।
10- लेह (Leh) :
लेह जम्मू कश्मीर राज्य के लद्दाख जिले का प्रमुख नगर है। सिंधु नदी के किनारे और 11000 फीट की ऊंचाई पर बसा लेह पर्यटकों को जमीं पर स्वर्ग का आभास कराता है। सुंदरता से परिपूर्ण लेह में रूईनुमा बादल इतने नजदीक होते हैं कि लगता है जैसे हाथ बढाकर उनका स्पर्श किया जा सकता है। गगन चुंबी पर्वतों पर ट्रैकिंग का यहां अपना ही मज़ा है। लेह में पर्वत और नदियों के अलावा भी कई ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं। यहां बड़ी संख्या में खूबसूरत बौद्ध मठ हैं जिनमें बहुत से बौद्ध भिक्षु रहते हैं।

Monday 2 January 2017

दुनिया का सबसे खुशहाल इंसान बनने का फॉमूला

आपको एक ऐसे इंसान से मिलवाने जा रहा है, जो दुनिया का इकलौता सबसे खुशहाल इंसान है। जो आखिरी बार 1991 में दुखी हुआ था। जिसकी खुशी से हैरान होकर अमेरिकन यूनिवर्सिटी ने खुशी का कारण जानने के लिए 12 साल तक रिसर्च किया हो.. वो भी दिमाग में 256 सेंसर लगाकर। और इन सबके बाद जिसे खुद यूनाईटेड नेशन (UN) ने धरती का सबसे खुशहाल इंसान माना हो। जिसने 45 साल में खुशी को अपनी आदत बना लिया हो।
मैथ्यू के मुताबिक, 'उनके हमेशा खुश रहने के पीछे का क्या राज है ये जानने के लिए अमेरिकन की नंबर 1 साइंटिफिक यूनिवर्सिटी विसकॉन्सिन के साइंटिस्ट से मेरे दिमाग पर 12 साल रिसर्च किया।'
- 'इस दौरान मेरे सिर पर 256 सेंसर लगाकर बुरी से बुरी परिस्थितियों में दिमाग के अंदर क्या चल रहा है.. कैसे काम कर रहा है.. इसकी पूरी रिपोर्ट तैयार की।'
- 'इस रिसर्च में मेरे अंदर एक गामा तरंग पाई गई। ये तरंग दुनिया में बहुत कम लोगों में डेवलप होती है। इसका काम हर कंडीशन में खुशी के लेवल को बढ़ाना होता है। इस तरंग को मैंने खुद डेवलप किया था।'


 सुबह उठते ही पीले रंग की किसी आकृति को 1 से 2 मिनट तक आंखें बड़ी करके लगातार देखें।

- फिर आंख को 30 सेकंड बंद करके दोबारा खोलें। अब आप रूटीन वर्क स्टार्ट सकते हैं। 
- संभव हो तो ऐसा सुबह के उगते सूरज की तरफ देखकर करें।
इससे कैसे खुशी मिलेगी:

- न्यूरो साइंस में पीला रंग खुशी और उम्मीद को रिफ्लेक्ट करता है। 
- ऐसे में सोकर उठते ही इंसान के दिमाग में मौजूद हैप्पीनेस का केमिकल एक्टिव हो जाएगा। अगले कुछ घंटे दिमाग खुश रहेगा।
- इसी साइंटिफिक कारण के चलते स्माइली के इमोजी का कलर पीला रखा गया है।
- बता दें, इंसान के दिमाग में हैप्पीनेस के 4 केमिकल होते हैं। इनका शॉर्ट फॉर्म DOSE है।



कब करें: सुबह उठने से सोने तक हर घंटे

तरीका:

- अपनी जगह पर खड़े होकर पहले हाथ ऊपर करें। 10 सेकंड के लिए बॉडी को स्ट्रेच करते हुए अपने किसी सोशल अचीवमेंट के बारे में
सोचे। नोट करें।
- मैथ्यू के सजेशन से गूगल ने इस एक्सरसाइज को अपने इम्प्लॉइज के मैनुअल में शामिल किया।
इससे कैसे खुशी मिलेगी:

- हाथ ऊपर पर बॉडी को स्ट्रेच करने से हमारी मांसपेशियां रिलेक्स मोड में चली जाती हैं।
- दिमाग इसे रीड करके फीलिंग कैमिकल्स को नॉर्मल कंडीशन में ले आता है।
- ऐसे में सोशल अचीवमेंट के बारे में सोचने पर खुशी-प्राइड केमिकल्स एक्टिव हो जाते हैं।






कब: जब भी खुश होना चाहें
तरीका:

- वर्किंग प्लेस या घर में अपने डियर वन की मुस्कुराती तस्वीर जरूर लगाएं।
- जब आप टेंशन फील करें या एनर्जी लेवल लो लगे तो इस तस्वीर को 1 मिनट तक लगातार देखें।
- ध्यान रहे इस दौरान दिमाग में और कुछ ना चले। सिर्फ तस्वीर पर फोकस हो।
- तस्वीर ना हो तो रोड़ पर चलती गाड़ियों या खिड़की के बाहर गार्डन की घांस को भी देख सकते हैं।
इससे कैसे खुशी मिलेगी:

- लगातार 1 मिनट तक देखने पर दिमाग फ्लैश बैक में चला जाता है।
- रिसर्च के मुताबिक, इससे दिमाग में उस डियर वन से जुड़ी पॉजिटिव याद रिकॉल होती है। 1 मिनट तक देखने से ये यादें स्ट्रेस
रिलीज करके खुशी केमिकल को ब्रेन में फैला देता है।
- बता दें, एक स्वस्थ इंसान के दिमाग में सबसे पहले एक्टिव होने वाला केमिकल हैप्पीनेस का ही होता है।




कब करें:डिप्रेशन फील होने या जब अनुमान के मुताबिक परिणाम न मिले

तरीका:



- जैसे नॉर्मल खाते हैं वैसे खाएं।
इससे कैसे खुशी मिलेगी:

- चॉकलेट और अखरोट में polyphenols केमिकल होता है।
- ये बॉडी में जाकर दिमाग के हैप्पीनेस पार्ट को एक्टिव करने का काम करते हैं। 
- डार्क चॉकलेट खाने पर इसका असर और बढ़ जाता है।









कब करें:हर घंटे या जब नर्वस फील करें
तरीका:
- हंसी ना भी आए तो मुंह खोलकर हंसे।
इससे कैसे खुशी मिलेगी:

- जब मुंह खोलते हैं तो दिमाग के आगे की तरफ वाली हैप्पीनेस नसें पर जोर पड़ता है।
- इससे इनमें खिंचाव आता है। और एक्चुअल साइज से ज्यादा फैल कर कैमिकल स्प्रेड करती हैं।
- जो कुछ देर के लिए हैप्पीनेस लेवल बढ़ाता है।

Thursday 30 June 2016

गौरैया के आशियाने को मिली नई 'उड़ान'


परिंदे पर्यावरण के सच्चे प्रहरी कहे जाते है। उन्हें पर्यावरण दूत का भी दर्जा दिया गया है। लेकिन अंधाधुंध शहरीकरण के बीच हमने उनका बसेरा छीन लिया है। अब आसमान में परिंदों के पर फड़फड़ाते है। फिजाओं में उनकी कूक,चींची सुनाई देती है। लेकिन उनके आशियाने को हमने उजाड़ दिया है। या यूं कहे कि हमें फिक्र ही नहीं रही कि हमारी तरह इन परिंदों का भी कोई बसेरा हो। सबसे ज्यादा उन नुकसान घर के आंगन में बरबस फुदकने वाली उस गौरैया के साथ हुआ जिसे आज भी हाउस स्पैरो यानी घर की चिड़िया कहा जाता है। परिंदों के लिए बसेरा उनके लिए सवेरा होने जैसा ही है। इसी कोशिश में दिल्ली के पर्यावरणविद राकेश खत्री की एक नई और अनोखी पहल रंग लाई है जो गौरैया संरक्षण पर पिछले कई वर्षों से काम कर रहे हैं।
राकेश खत्री पिछले कई साल से पर्यावरण के अलग-अलग सेगमेंट में काम कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से वह पक्षियों के संरक्षण पर भी काम कर रहे हैं। फिलहाल वह गौरैया संरक्षण के साथ जल संरक्षण पर भी काम कर रहे हैं। वह देशभर में 15 हजार से ज्यादा घोंसले बना चुके हैं। लेकिन घोसले बनाने की उपलब्धि को राकेश खत्री बड़ा नहीं मानते। उनका कहना है 'जब मैं इन घोसलों को बनाता हूं तो इसके पीछे मेरी एक आस होती है, उम्मीद छिपी होती है और उसको साकार करने के लिए मैं इस कवायद को अंजाम देता हूं। मैं चाहता हूं कि जिस घोसले को बनाऊं उसमें वो पक्षी आकर रहे जिसके लिए यह बनाया गया है।' उनके मुताबिक हर पक्षी के घोंसले में थोड़ा-बहुत फर्क होता है लेकिन आशियाना तो आशियाना होता है। इंसान अपनी पूरी जिंदगी एक आशियाने की खातिर क्या कुछ नहीं करता लेकिन अपने आसपास पर्यावरण के इन दूतों (परिंदों) के बारे में नहीं सोचता। वह चाहते है कि लोग तेज रफ्तार से अपनी भागती दौड़ती कश्मकश से भरी जिंदगी में से थोड़ा वक्त निकाले। क्या उस गौरैया की खातिर एक घोसला भी नहीं बना सकते जो रूठकर हमारे घर के आंगन से चली गई है?

गौरैया के घोसले के एक आशियाने में तब्दील होने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। राकेश खत्री कहते हैं 'जो घोसला हम बनाकर एक प्रतीक के रूप में इन गौरैयों को देते है। उसे घर के रूप में बदलने की कवायद की सबसे पहली पहल नर गौरैया करता है। वह घोसले में तिनका-घास-फूस सात से आठ दिनों तक लगातार लाता है। इसके बाद उन लाए हुए तिनके-घास-फूस को करीने से संवारने के लिए मादा गौरैया का घोसले में प्रवेश होता है। मादा गौरैया इन बिखरे हुए तिनके को करीने से सजाती-संवारती है और उसे दोनों (नर और मादा गौरैया) के रहने के लिए घर का रूप देती है। अब इस घोसले में दोनों रहने लगते है। जब अंडे देने के बाद मादा गौरेये उसे सेती है और जबतक उसमें से चूजे नहीं निकल जाते , इस दौरान पूरा ख्याल नर गौरैया रखता है। मादा गौरैया घोसले से बाहर नहीं निकलती और उसके खाने-पीने का पूरा बंदोबस्त नर गौरैया ही करता है।' हर घोसला दो गौरैया से गुलजार होता है जिसमें नर और मादा रहते है। अंडे देने उसके सेने का चक्र चलता रहता है इस तरह से गौरैया के परिवार में नए सदस्यों के आगमन का यह सिलसिला चलता रहता है। लेकिन यह सबकुछ आशियाने पर निर्भर करता है। क्योंकि घोसला इनके जीवन में ठीक वही भूमिका निभाता है जो इंसान के जीवन में एक घर का महत्व होता है।

परिंदों से जुड़े कुछ अलफाजों को अगर आप ध्यान से सुने तो बड़ा सुकून मिलता है। इन शब्दों में गजब की ताजगी है जो आपको ऊर्जा से भर देती है। जरा गौर कीजिए। फुर्र-फुर्र, फुदकना, चुगना,चीं-चीं,चहचहाहट,चूं-चूं,चुग्गा,कलरव,फड़फडाना,चोंच आदि। एक नन्ही गौरैया आपके घर के दरवाजे के बाहर बैठी है। वो इस आस में बैठी है कि घर का दरवाजा कभी तो खुलेगा।  क्या आप घर का दरवाजा खोलेंगे?

Saturday 22 August 2015

भारत क्या भेंट कर सकता है दुनिया को

भारत के 68वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, सद्‌गुरु बता रहे हैं कि भारत किस तरह दुनिया की महाशक्ति बन सकता है। इसके लिए दुनिया को जीतने की नहीं, बल्कि सभी को खुद में शामिल करने की जरूरत होती है।
1992 में भारत रत्न पुरस्कार मिलने के बाद जेआरडी टाटा ने कहा था, ‘मैं भारत को एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में नहीं देखना चाहता। मैं भारत एक खुशहाल देश के रूप में देखना चाहता हूं।’
आज सिर्फ उसका ही सम्मान किया जा रहा है जिसके पास ताकत है। इसकी वजह यह है कि हमने ऐसी दुनिया नहीं बनाई, जहां सौम्यता की, भद्रता की इज्जत की जाए। लेकिन सोचने की बात यह है कि क्या शक्ति, धन-दौलत इकट्ठा करने का यह पागलपन हमें खुशहाल बना रहा है? भारत पर अब दुनिया भर की नजर है। इस बात का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है कि हम दुनिया के सामने अपनी कैसी छवि पेश कर रहे हैं, हमारे पास दुनिया को देने के लिए क्या है।
ज्ञानियों को पैदा करने की तकनीक
हम भूल गए हैं कि भारतीय संस्कृति का मर्म या सारतत्व हमेशा इंसान की मुक्ति या मोक्ष रहा है। किसी दूसरी संस्कृति ने इंसान को इतनी गहराई और समझ के साथ नहीं देखा और उसे अपनी चरम प्रकृति तक विकसित होने के तरीके नहीं बनाए। साफ और खुले तौर पर कहें तो हमारे पास ज्ञानी बनाने की तकनीकें हैं। पश्चिमी समाज राजनीतिक, सामाजिक और शारीरिक मुक्ति की बात करते हैं, मगर हमने हमेशा चरम मुक्ति या मोक्ष को अपना सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य माना है।
हमें यह समझने की जरूरत है कि यह भारतीय आध्यात्मिक चरित्र किसी विश्वास या मत प्रणाली से जुड़ा नहीं है। इसका संबंध उन प्रणालीबद्ध अभ्यासों से है जिन्हें हजारों सालों में इतने बौद्धिक और शानदार तरीके से बनाया गया था कि वे एक खास तरीके से मन और शरीर को मांजते थे।
एक देश के रूप में हमें दुनिया के सामने उदाहरण बनना चाहिए कि जब हम आजादी की बात करते हैं, तो हमारा मतलब चरम मुक्ति होता है: हर चीज से आजादी, पक्षपात या पूर्वाग्रह से आजादी, भय से आजादी, मृत्यु से आजादी।यही वजह है कि आज के सूचना और प्रौद्योगिकी युग में भी यह देश इतनी सहजता से आगे की ओर बढ़ रहा है। भारत एक देश के रूप में बहुत अनोखा है। ऐसा चरित्र और गुण आपको कहीं और नहीं मिलेगा। जिस जनसमूह को हम भारत कहते हैं, उसका एक खास आयाम रहा है – एक खास जागरूकता और ज्ञान, जो कहीं और मिलना मुश्किल है। लोग जब भी भीतरी खुशहाली के बारे में सोचते हैं, तो पूरब की ओर देखते हैं। क्यों न भारत यह कामना और कोशिश करे की दुनिया का हर देश ध्यान करना सीखे?
तभी मैं ‘योग’ की बात कर रहा था। योग से मेरा मतलब उन तमाम मुद्राओं से नहीं है, जिनमें लोग महारत हासिल करना चाहते हैं। मैं एक पद्धति, एक संपूर्ण तकनीक के रूप में योग की बात कर रहा हूं जो आपके अंदर समावेश की एक भावना ले आता है, जिससे आप हर चीज और हर इंसान को अपना एक हिस्सा समझने लगते हैं। यह आखिरकार आपको उन हकीकतों का एक स्पष्ट बोध कराता है, जिसमें आप मौजूद होते हैं।
विजय बनाम समावेश
किसी इंसान या किसी चीज को अपना बनाने के दो तरीके होते हैं – पहला उसे जीत कर और दूसरा उसे खुद में समावेशित कर। समावेश योग का तरीका है, जबकि जीत बदकिस्मती से आधुनिक विज्ञान का तरीका बन गया है। हमें जीवन की उपलब्धियों के बारे में गलतफहमी है। क्या किसी को नुकसान पहुंचाने की कीमत पर जीत एक उपलब्धि है या इस तरह समावेश करना उपलब्धि है, कि कोई आपसे प्रेम करने लगे? खास तौर पर बच्चों के दिमाग में भरे उपलब्धि या कामयाबी के नासमझी भरे विचारों को हमें बदलना होगा। हालांकि जबरन कुछ पाने की कोशिश ज्यादा कामयाब होती है, मगर यह बहुत असभ्य तरीका है। समावेश और सौम्यता में ही जीवन की प्रक्रिया फलती-फूलती है।
हम भूल गए हैं कि भारतीय संस्कृति का मर्म या सारतत्व हमेशा इंसान की मुक्ति या मोक्ष रहा है। किसी दूसरी संस्कृति ने इंसान को इतनी गहराई और समझ के साथ नहीं देखा और उसे अपनी चरम प्रकृति तक विकसित होने के तरीके नहीं बनाए।इसलिए हमारी हसरत स्पष्टता से काम करने वाला और जहां तक संभव हो, अपने साथ-साथ दुनिया में हर किसी के लिए खुशहाली लाने वाला देश बनने की होनी चाहिए। बदकिस्मती से दो सदियों तक घोर गरीबी ने हमारे आध्यात्मिक मूल्यों को विकृत कर दिया है। यह हर पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि उसे फिर से अपने सही आकार में लाए ताकि वह फिर से दुनिया के सामने अपनी जबर्दस्त संभावना को दर्शाते हुए इंसान की मुक्ति का एक कारगर उपकरण बन जाए।
इस संस्कृति के लिए अब समय आ गया है कि वह खुद को एक बार फिर से व्यक्त और पुन:स्थापित करे। विदेशी आक्रमणों और गरीबी के कारण हमारी संस्कृति में जो विकृतियां आई हैं, उसने अभी भी आध्यात्मिक डोर को नष्ट नहीं किया है। बेशक इसने हमें सत्ता और दौलत का भूखा बना दिया है। एक देश के रूप में हमें दुनिया के सामने उदाहरण बनना चाहिए कि जब हम आजादी की बात करते हैं, तो हमारा मतलब चरम मुक्ति होता है: हर चीज से आजादी, पक्षपात या पूर्वाग्रह से आजादी, भय से आजादी, मृत्यु से आजादी। उस फोकस को स्थापित करना आज सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि हर इंसान काफी हद तक बाहरी तत्वों की वजह से उलझता है। भय मानव बुद्धि को कई तरह से बाधित करता है। मगर एक बार जब कोई इंसान मुक्ति का चरम लक्ष्य तय कर लेता है, तो उसके लिए और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं होता। वह एक गहन समझ के साथ और जिम्मेदारी की एक भावना के साथ अपना जीवन जीता है। हमें दुनिया में मौजूद गला काट प्रतिस्पर्धा के हालातों का विपरीत उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। हमें ऐसा समाज स्थापित करना चाहिए, जिसकी इज्जत उसकी आक्रामकता या दौलत के कारण नहीं, बल्कि जीवन के ज्ञान के कारण हो। जब तक हम भद्रता, सौम्यता का सम्मान करना नहीं सीखेंगे, दुनिया कभी इस तरह के विकास के बारे में नहीं जान पाएगी।