Sunday 9 August 2015

अनाज की बर्बादी

देश में बड़ी संख्या में अभी भी गरीब हैं, जिन्हें या तो दो वक्त रोटी नसीब नहीं होती या फिर इसके लिए उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं दूसरी तरफ देश के कई हिस्सों में आज भी बड़ी मात्र में अनाज खुले आसमान के नीचे पड़े सड़ रहे हैं। पंजाब में भी ऐसे दृश्य कई जगह देखने को मिल जाएंगे, जहां खुले आसमान के नीचे पड़े अनाज सड़ रहे हैं और इस हालत में पहुंच गए हैं कि अब उन पर पशु भी मुंह नहीं मारते। तरनतारन के गांव कदगिल में भी यही तस्वीर दिखाई देती है, जहां 2011 में पनग्रेन की तरफ से खुले आसमान के नीचे स्टोर किया गया 4.75 लाख बोरी गेहूं इस कदर सड़ गया है कि अब यह पशुओं के खाने लायक भी नहीं बचा है। हैरत की बात यह है कि हाईकोर्ट की ओर से एफसीआइ के मैनेजिंग डायरेक्टर, पनग्रेन के एमडी व तरनतारन के डीसी को इस गेहूं को उठाने के आदेश जारी किए गए थे, परंतु किसी ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया। इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट भी यह कह चुका है कि सरकारें यदि अनाज का रखरखाव नहीं कर सकती हैं तो उन्हें सड़ाने की बजाय गरीबों में क्यों नहीं बांट देतीं? परंतु हालात जस के तस बने हुए हैं और सभी को इस बात का इंतजार है कि आखिर कब अनाज की इस कदर बर्बादी रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाएगा। पंजाब को कृषि प्रधान प्रदेश कहा जाता है और ऐसे प्रदेश में अन्न की इस तरह बेकद्री कदाचित चिंताजनक व दुखद है। एक तरफ तो प्रदेश सरकार किसानों व गरीबों का हमदर्द होने का दावा करती है, परंतु दूसरी तरफ सरकार व प्रशासन की गलत नीतियों के कारण यही दोनों वर्ग सबसे अधिक दुखी हैं। केंद्र व राज्य सरकार को इस संबंध में गहन चिंतन करना चाहिए और ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे एक तरफ जहां हर गरीब को आसानी से रोटी मिल सके, वहीं अनाज का एक दाना भी बर्बाद न होने पाए। इसके लिए अन्न के बढ़ते उत्पादन के अनुपात में ही भंडारण की क्षमता भी बढ़ानी चाहिए व साथ ही इसके वितरण में भी तेजी लाई जानी चाहिए ताकि प्रदेश में अनाज का एक दाना भी बर्बाद न होने पाए। अनाज की बर्बादी
अनाज की बर्बादी
अनाज की बर्बादी