Monday 6 August 2012

अन्ना का अनशन बना राजनीतिक मिशन?

अपने गांव रालेगण सिद्धि का कायापलट करने के बाद सारे देश का कायापलट करने का सपना आंखों में लेकर वयोवृद्ध गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे जब दिल्ली की तरफ चले तो जैसे सारा देश उनके पीछे खड़ा हो गया। भ्रष्टाचार से तंग आ चुका हर आदमी अन्ना की बातों से इत्तेफाक रखने लगा कि भई, देश को सचमुच अब लोकपाल की जरूरत है। अन्ना हजारे और उनकी टीम ने जब सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर होनेवाले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोकपाल विधेयक को संसद में पारित करवाने के लिए मुहिम छेड़ी तो सारा देश जैसे जागा और सबको लगा कि हां, देश से भ्रष्टाचार को ख़त्म करना बेहद ज़रूरी है।

आंखों में यही सपना और मन में यही संकल्प लेकर अन्ना हजारे ने 5 अप्रैल 2011 को सरकार पर लोकपाल विधेयक पारित करवाने का दबाव बनाने के लिए अपना अनिश्चितकालीन यानी आमरण अनशन शुरू कर दिया। भूख हड़ताल शुरू कर दी उन्होंने और उनके साथ हर उम्र और हर वर्ग के हजारों लोगों ने देश के कोने-कोने में अनशन किया और लोकपाल के पक्ष में समर्थन दिया।

सरकार ने जब अन्ना की मांगें मानी तब 9 अप्रैल थी और उस दिन उन्होंने अनशन तोड़ भी दिया और कहा कि आगामी 15 अगस्त तक लोकपाल पारित हो जाना चाहिए।

सरकार ने फौरन कार्रवाई दिखाते हुएअधिसूचना जारी कर दी कि लोकपाल का मसौदा बनाने के लिए एक संयुक्त समिति बनाई जाएगी जिसमें सरकार और सिविल सोसायटी यानी टीम अन्ना के सदस्य शामिल रहेंगे।

लेकिन फिर शुरू हुआ वाद-विवाद का दौर और टीम अन्ना को लगा कि सरकार अपना वादा नहीं निभा रही है और मनमानी कर रही है।

28 जुलाई को कैबिनेट ने लोकपाल का मसौदा मंजूर कर लिया लेकिन उसमें प्रधानमंत्री, न्यायपालिका, और निचली ब्योरोक्रेसी को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा।

अन्ना ने फिर 16 अगस्त को देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया और 28 अगस्त तक अनशन करते रहे। देश की संसद में लोकसभा ने तो लोकपाल पारित करवा दिया लेकिन राज्यसभा में यह विधेयक जाकर अटक गया।

अन्ना ने अपने अनशन के लिए अगला पड़ाव मुम्बई को चुना और 27 दिसम्बर को शुरू कर अगले तीन दिनों में ही उसे वापस ले लिया, क्योंकि उनकी तबीयत ने उनका साथ नहीं दिया और न ही जनता ने कोई खास प्रतिक्रिया उन्हें दी।

अन्ना इन अनशनों के दौरान बारबार कहते रहे कि हमारा मकसद लोकपाल पारित करवाना है, लेकिन उनके अनुसार हर बार वे सरकार से छले गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने अनशन के मार्ग से लोकपाल पारित करवाने पर अड़े रहे।
हालांकि दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने बारबार कहा कि अन्ना का अनशन राजनीतिक है और उनका मकसद राजनीति में आना है।
लेकिन टीम अन्ना ने बारबार इसे खारिज कर दिया।

इस बार 25 जुलाई को शुरू हुए अनशन के बाद भी अन्ना ने कहा कि वे कोई राजनीतिक दल नहीं बनाएंगे, हां ईमानदार नेताओं का जरूर समर्थन करेंगे। पर अब अन्ना पूरी तरह से बदल गए हैं और उनकी टीम ने फैसला कर लिया है कि लोकपाल और चुनाव प्रणाली में परिवर्तन की लड़ाई को वे सड़क से संसद तक ले जाएंगे।

हालांकि उनके कई समर्थक और नेता अन्ना के इस फैसले से खफा है, लेकिन कई चाहते हैं कि राजनीतिक गलियारों में दाखिल हुए बिना प्रशासन में आमूल परिवर्तन करना सम्भव नहीं है।

अब टीम अन्ना उसी रास्ते पर चल पड़ी है जिसका विरोध वह लगातार करती आ रही है। लेकिन क्या टीम अन्ना से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह मौजूदा राजनीति के रेगिस्तान में ईमानदारी और निष्पक्षता के फूल खिलाएगी या कि राजनीति की दुर्गंध में दबकर रह जाएगी।