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इस समय भ्रष्टाचार और ईमानदारी का बड़ा शोर है। जिसे देखो वही इस पर भाषण
देता नजर आ जाता है। कुछ लोगों ने यह मान लिया है कि देश से भ्रष्टाचार को
खत्म कर दिया जाए तो सारी विसंगतियां की खत्म हो जाएंगी। इसलिए ईमानदारी
का चोला पहनकर कुछ लोग राजनीति का शुद्धिकरण करने निकल पड़े हैं। इनका
मानना है कि सियासत में बहुत भ्रष्टाचार है। सियासत के भ्रष्टाचार को दूर
कर दिया तो गंगा पवित्र हो जाएगी।
यह महा भ्रम है। यह विभ्रम का ऐसा पाठ है जिसका न कोई सिद्धांत हैं और न ही विचार। यह किसी सड़ी-गली व्यवस्था को टानिक देने का ऐसा कृत्य है जिसे इतिहास शायद ही माफ करे।
दरअसल, किसी देश के विकास में भ्रष्टाचार उतना बाधक नहीं होता जितना कि बेरोजगारी, गरीबी और असमानता। भ्रष्टाचार तो इन्हीं तीनों विसंगतियों से उपजता है। जाहिर है कि यदि भ्रष्टाचार को खत्म करना है तो बेरोजगारी, गरीबी और असमानता को खत्म करना होगा। लेकिन इसकी बात कोई नहीं करता। हर कोई देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए उतावला है और कुछ भी ऊल जुलूल बोले जा रहा है। कोई तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर कल्पना की पतंग उड़ा रहा है तो कोई ईमानदारी के लबादे में व्यवस्था परिवर्तन का ख्वाब दिखा रहा है।
दरअसल, देश में इस समय सपने बिक रहे हैं। अपने सपने और अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए ऐसा चक्रव्यूह बनाया जा रहा है जिसमें हत्या आम जनता की ही की जाएगी। इस चक्रव्यूह का अभिमन्यु वह जनता है, जो इनकी चालाकियों को तो जानती है लेकिन उनके बुने जाल से निकलना नहीं जानती।
ईमानदारी क्या है? एक अमूर्त कृत्य, जो कभी-कभी किसी व्यक्ति के व्यवहार में मूर्त होती है। ऐसा आदर्श है, जो दिखावटी अधिक है और सच से दूर है। इसी तरह सच भी एक अमूर्त क्रिया है। सच बोलने वाला सच के करीब भी नहीं होता। सौ प्रतिशत सत्यवादी होने का दावा करने वाला भी सच से कोसों दूर होता है।
दरअसल, दोनों ही क्रियाएं संस्कृति से जुड़ी हैं। इनकी अभिव्यक्ति आदमी के व्यवहार में होती है। ईमानदारी और सच वाली संस्कृति किसी प्रकार की टोपी पहनने से नहीं आती, उसे दिन प्रतिदिन के व्यवहार में उतरना पड़ता है। लेकिन बेरोजगारी, गरीबी और असमानता के वातावरण में इसे व्यवहार में कदापि नहीं उतारा जा सकता। ऐसे में या तो टोपी पहनी जाएगी या तो पहनाई जाएगी। आजकल टोपी पहनने और पहनाने के चलन को आदर्शवाद के लबादे में दिखाया जा रहा है।
यह महा भ्रम है। यह विभ्रम का ऐसा पाठ है जिसका न कोई सिद्धांत हैं और न ही विचार। यह किसी सड़ी-गली व्यवस्था को टानिक देने का ऐसा कृत्य है जिसे इतिहास शायद ही माफ करे।
दरअसल, किसी देश के विकास में भ्रष्टाचार उतना बाधक नहीं होता जितना कि बेरोजगारी, गरीबी और असमानता। भ्रष्टाचार तो इन्हीं तीनों विसंगतियों से उपजता है। जाहिर है कि यदि भ्रष्टाचार को खत्म करना है तो बेरोजगारी, गरीबी और असमानता को खत्म करना होगा। लेकिन इसकी बात कोई नहीं करता। हर कोई देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए उतावला है और कुछ भी ऊल जुलूल बोले जा रहा है। कोई तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर कल्पना की पतंग उड़ा रहा है तो कोई ईमानदारी के लबादे में व्यवस्था परिवर्तन का ख्वाब दिखा रहा है।
दरअसल, देश में इस समय सपने बिक रहे हैं। अपने सपने और अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए ऐसा चक्रव्यूह बनाया जा रहा है जिसमें हत्या आम जनता की ही की जाएगी। इस चक्रव्यूह का अभिमन्यु वह जनता है, जो इनकी चालाकियों को तो जानती है लेकिन उनके बुने जाल से निकलना नहीं जानती।
ईमानदारी क्या है? एक अमूर्त कृत्य, जो कभी-कभी किसी व्यक्ति के व्यवहार में मूर्त होती है। ऐसा आदर्श है, जो दिखावटी अधिक है और सच से दूर है। इसी तरह सच भी एक अमूर्त क्रिया है। सच बोलने वाला सच के करीब भी नहीं होता। सौ प्रतिशत सत्यवादी होने का दावा करने वाला भी सच से कोसों दूर होता है।
दरअसल, दोनों ही क्रियाएं संस्कृति से जुड़ी हैं। इनकी अभिव्यक्ति आदमी के व्यवहार में होती है। ईमानदारी और सच वाली संस्कृति किसी प्रकार की टोपी पहनने से नहीं आती, उसे दिन प्रतिदिन के व्यवहार में उतरना पड़ता है। लेकिन बेरोजगारी, गरीबी और असमानता के वातावरण में इसे व्यवहार में कदापि नहीं उतारा जा सकता। ऐसे में या तो टोपी पहनी जाएगी या तो पहनाई जाएगी। आजकल टोपी पहनने और पहनाने के चलन को आदर्शवाद के लबादे में दिखाया जा रहा है।