Thursday 30 June 2016

गौरैया के आशियाने को मिली नई 'उड़ान'


परिंदे पर्यावरण के सच्चे प्रहरी कहे जाते है। उन्हें पर्यावरण दूत का भी दर्जा दिया गया है। लेकिन अंधाधुंध शहरीकरण के बीच हमने उनका बसेरा छीन लिया है। अब आसमान में परिंदों के पर फड़फड़ाते है। फिजाओं में उनकी कूक,चींची सुनाई देती है। लेकिन उनके आशियाने को हमने उजाड़ दिया है। या यूं कहे कि हमें फिक्र ही नहीं रही कि हमारी तरह इन परिंदों का भी कोई बसेरा हो। सबसे ज्यादा उन नुकसान घर के आंगन में बरबस फुदकने वाली उस गौरैया के साथ हुआ जिसे आज भी हाउस स्पैरो यानी घर की चिड़िया कहा जाता है। परिंदों के लिए बसेरा उनके लिए सवेरा होने जैसा ही है। इसी कोशिश में दिल्ली के पर्यावरणविद राकेश खत्री की एक नई और अनोखी पहल रंग लाई है जो गौरैया संरक्षण पर पिछले कई वर्षों से काम कर रहे हैं।
राकेश खत्री पिछले कई साल से पर्यावरण के अलग-अलग सेगमेंट में काम कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से वह पक्षियों के संरक्षण पर भी काम कर रहे हैं। फिलहाल वह गौरैया संरक्षण के साथ जल संरक्षण पर भी काम कर रहे हैं। वह देशभर में 15 हजार से ज्यादा घोंसले बना चुके हैं। लेकिन घोसले बनाने की उपलब्धि को राकेश खत्री बड़ा नहीं मानते। उनका कहना है 'जब मैं इन घोसलों को बनाता हूं तो इसके पीछे मेरी एक आस होती है, उम्मीद छिपी होती है और उसको साकार करने के लिए मैं इस कवायद को अंजाम देता हूं। मैं चाहता हूं कि जिस घोसले को बनाऊं उसमें वो पक्षी आकर रहे जिसके लिए यह बनाया गया है।' उनके मुताबिक हर पक्षी के घोंसले में थोड़ा-बहुत फर्क होता है लेकिन आशियाना तो आशियाना होता है। इंसान अपनी पूरी जिंदगी एक आशियाने की खातिर क्या कुछ नहीं करता लेकिन अपने आसपास पर्यावरण के इन दूतों (परिंदों) के बारे में नहीं सोचता। वह चाहते है कि लोग तेज रफ्तार से अपनी भागती दौड़ती कश्मकश से भरी जिंदगी में से थोड़ा वक्त निकाले। क्या उस गौरैया की खातिर एक घोसला भी नहीं बना सकते जो रूठकर हमारे घर के आंगन से चली गई है?

गौरैया के घोसले के एक आशियाने में तब्दील होने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। राकेश खत्री कहते हैं 'जो घोसला हम बनाकर एक प्रतीक के रूप में इन गौरैयों को देते है। उसे घर के रूप में बदलने की कवायद की सबसे पहली पहल नर गौरैया करता है। वह घोसले में तिनका-घास-फूस सात से आठ दिनों तक लगातार लाता है। इसके बाद उन लाए हुए तिनके-घास-फूस को करीने से संवारने के लिए मादा गौरैया का घोसले में प्रवेश होता है। मादा गौरैया इन बिखरे हुए तिनके को करीने से सजाती-संवारती है और उसे दोनों (नर और मादा गौरैया) के रहने के लिए घर का रूप देती है। अब इस घोसले में दोनों रहने लगते है। जब अंडे देने के बाद मादा गौरेये उसे सेती है और जबतक उसमें से चूजे नहीं निकल जाते , इस दौरान पूरा ख्याल नर गौरैया रखता है। मादा गौरैया घोसले से बाहर नहीं निकलती और उसके खाने-पीने का पूरा बंदोबस्त नर गौरैया ही करता है।' हर घोसला दो गौरैया से गुलजार होता है जिसमें नर और मादा रहते है। अंडे देने उसके सेने का चक्र चलता रहता है इस तरह से गौरैया के परिवार में नए सदस्यों के आगमन का यह सिलसिला चलता रहता है। लेकिन यह सबकुछ आशियाने पर निर्भर करता है। क्योंकि घोसला इनके जीवन में ठीक वही भूमिका निभाता है जो इंसान के जीवन में एक घर का महत्व होता है।

परिंदों से जुड़े कुछ अलफाजों को अगर आप ध्यान से सुने तो बड़ा सुकून मिलता है। इन शब्दों में गजब की ताजगी है जो आपको ऊर्जा से भर देती है। जरा गौर कीजिए। फुर्र-फुर्र, फुदकना, चुगना,चीं-चीं,चहचहाहट,चूं-चूं,चुग्गा,कलरव,फड़फडाना,चोंच आदि। एक नन्ही गौरैया आपके घर के दरवाजे के बाहर बैठी है। वो इस आस में बैठी है कि घर का दरवाजा कभी तो खुलेगा।  क्या आप घर का दरवाजा खोलेंगे?