चार शहर -- दिल्ली, गुड़गाँव, मेरठ और फरीदाबाद -- सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।'
फोटो: नयी दिल्ली में नगरपालिका के टैंकर से पीने का पानी भरने के लिये कतार में खड़े निवासी।
भारत में अप्रत्याशित रूप से पानी से जुड़ी आपातकालीन स्थिति सामने आ रही है।
कई शहर पानी की कमी से जूझ रहे हैं और छोटे शहरों में टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है।
गाँवों में हालात और भी ख़राब हैं, जहाँ से कई लोग पानी की तलाश में शहरों का रुख़ कर रहे हैं।
"नागपुर में आज वेयोलिया इंडिया नामक एक फ्रेंच कंपनी पानी प्रदान कर रही है... वेयोलिया इंडिया अब भारत के 18 शहरों में पानी की आपूर्ति करना चाहती है। जल्द ही, वो लोग देश के पानी पर कब्ज़ा कर लेंगे," मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह ने, नीचे, रिडिफ.कॉम के सैयद फिरदौस अशरफ़ को बताया।
पानी की कमी जैसी गंभीर समस्या का कोई स्थायी समाधान क्यों नहीं है? हमसे कहाँ ग़लती हुई है?
किसी भी राजनैतिक पार्टी का मैनिफेस्टो उठा कर देख लीजिये, आप देखेंगे कि उनमें से कोई भी पानी की बात नहीं करता।
उनकी आँखों के आँसू सूख चुके हैं और वो पानी की बात तभी करते हैं जब उन्हें पानी का निजीकरण करना हो।
एक पार्टी अपने मैनिफेस्टो में कहती है कि वह हर नागरिक के घर पर नल का पानी उपलब्ध करायेगी।
लेकिन यह कैसे संभव है?
पानी बचा ही नहीं है।
ऐसी स्थिति में, आप जल-नल (नल में पानी) के ऐसे वादे कैसे कर सकते हैं?
यह जल-नल सिर्फ प्राइवेट कंपनियों के लिये है।
इस समस्या के समाधान के लिये पिछली सरकारों ने क्या किया था?
जब पानी एक प्राथमिकता थी, तब पिछली सरकारों ने बड़े डैम बनाये थे।
महाराष्ट्र का उदाहरण ले लीजिये, जहाँ 42 बड़े डैम हैं। राज्य के नेता गन्ने की खेती से पैसे बनाने की सोच रखते थे।
महाराष्ट्र में खेती का औद्योगिकीकरण किया गया था।
कृषि एक कृषि व्यापार बन गयी।
आज महाराष्ट्र में गन्ने की खेती के लिये 84 फ़ीसदी पानी ज़मीन से लिया जा रहा है।
इससे खतरनाक बात और क्या हो सकती है?
देश के नेताओं के पास पानी को लेकर कोई योजना नहीं है।
उनकी योजना है बस पानी के नाम पर वोट मांगना।
नेता पानी के मुद्दे को बस प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स द्वारा सुलझाना चाहते हैं।
ये निजी ठेकेदार कभी पानी की समस्या का समाधान नहीं ढूंढ सकते।
पानी की समस्या का समाधान सिर्फ समाज कर सकता है।
लेकिन अगर लोग इस समस्या के समाधान के लिये एकजुट नहीं हुए, तो इसका समाधान कभी नहीं होगा।
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी - शिवसेना द्वारा शुरू की गयी जलयुक्त शिवर योजना के बारे में आपका क्या कहना है?
यह एक अच्छा उदाहरण है।
जलयुक्त शिवार पहले दो साल में एक आदर्श कार्यक्रम था।
इसे वैज्ञानिक सोच के साथ शुरू किया गया था।
पूरे महाराष्ट्र के गाँववासियों ने पानी की समस्या के समाधान के लिये अपनी जेब से 350 करोड़ रुपये खर्च किये।
लेकिन, जब सरकार ने जलयुक्त शिवार का काम प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स को देना शुरू किया, तब से लोगों ने पैसे देने की जगह काम करना भी बंद कर दिया।
उन्हें समझ में आ गया कि कॉन्ट्रैक्टर पानी के नाम पर पैसों की हेरा-फेरी करने वाले हैं।
जलयुक्त शिवार अब असफल हो चुका है।
महाराष्ट्र सरकार प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स को क्यों लायी?
क्योंकि वो चाहते थे कि कॉन्ट्रैक्टर पैसे बनायें और चुनाव के समय उन्हें लौटायें।
मुझे नहीं पता कि यह किसका सुझाव था, मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस का या उनके किसी मंत्री का।
लेकिन ठीकरा तो फडनवीस के सिर पर ही फूटेगा।
जलयुक्त शिवार कार्यक्रम में कॉन्ट्रैक्टर्स के शामिल होने पर आपने विरोध क्यों नहीं किया?
मैंने फडनवीस को इसकी जानकारी दी थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया।
मेरा काम लड़ना नहीं, शांति से काम करना है।
जब तक फडनवीस मेरी सुनते थे, मैं उनके लिये काम करता था।
लेकिन जब उन्होंने सुनना बंद कर दिया, तब मैं घर पर बैठ गया।
आज भी मैं महाराष्ट्र के सांगली जिले में काम करता हूं, जहाँ चार साल सूखा पड़ने के बावजूद हमने सुनिश्चित किया कि आगरानी और महाकाली जैसी नदियों से जल की आपूर्ति हो सके।
भारत में पानी की समस्या कितनी गंभीर है?
बहुत ही जल्द, भारत के 21 शहरों में नल का पानी बिल्कुल नहीं मिलेगा (जब नल सूख जायेंगे और लोगों को पानी के लिये कतार में लगना पड़ेगा)।
अगर सरकार ने जल्द कोई कदम नहीं उठाया, तो भारत के 21 शहरों में केप टाउन की तरह ही पानी नहीं होगा।
चार शहर -- दिल्ली, गुड़गाँव, मेरठ और फ़रीदाबाद -- सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
उनके पास बिल्कुल पानी नहीं होगा।
फोटो: महाराष्ट्र के ठाणे जिलें में एक प्रदूषित झील के बगल में बनाये गये गड्ढे से पानी लेती महिला।
गाँवों में स्थिति कैसी है?
गाँवों में रहने वाले लोग गाँव छोड़ कर शहरों का रुख़ कर रहे हैं।
भारत का भविष्य एक खतरनाक दिशा में जा रहा है।
जब गाँव के लोग गाँव छोड़ कर शहर जाने लगें, तो शहरों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
ये चीज़ें किसी भी राजनैतिक पार्टी के मैनिफेस्टो में नहीं हैं।
बरसात कम होने पर सरकार क्या कर सकती है?
कम बरसात प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव-निर्मित (समस्या) है।
भारत में पानी की कमी एक मानवनिर्मित समस्या है।
उन्होंने पहाड़ों के पेड़ काट दिये हैं।
धरती पर हरियाली बची नहीं है।
ऐसा होने पर, उन क्षेत्रों में बादल तो दिखेंगे, लेकिन हवा का दबाव कम होने के कारण बारिश नहीं होगी।
जब भी मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है, प्रकृति मनुष्य को सबक ज़रूर सिखाती है।
कहीं भारी बरसात, तो कहीं सूखा -- भारत ऐसी स्थिति का सामना कैसे कर सकता है?
जब पहाड़ों पर बरसात होती है, तो उसे वहीं रोक दिया जाना चाहिये और पानी को भूमिगत ऐक्विफर्स में डाला जाना चाहिये, ताकि भूक्षरण न हो पाये।
पानी में नमी रहने के कारण हरियाली दिखाई देगी।
मिट्टी बह कर नदियों में जमा नहीं होगी।
वर्तमान में भारत में एक साथ कई जगह बाढ़ और सूखे की स्थिति सामने आती है, क्योंकि हम बरसात के पानी का बहाव नियंत्रित नहीं करते।
जब पानी बहुत तेज़ी से बहता है, तो मिट्टी का क्षरण होता है।
जहाँ मिट्टी है ही नहीं, वैसी जगहों पर अकाल पड़ जाता है, जैसे मराठवाड़ा।
जहाँ मिट्टी है, वहाँ मिट्टी बह कर नदियों में जमा हो जाती है। जिससे नदियाँ भर जाती हैं और बाढ़ आ जाती है।
अगर हम भारत में बाढ़ और अकाल को रोकना चाहते हैं, तो हमें बरसात के पानी के बहाव पर नियंत्रण रखना होगा।
भारत को बाढ़-मुक्त करने के लिये, हमें पानी के बहाव को धीमा करना होगा।
हमें सुनिश्चित करना होगा कि पानी पैदल चले, और जब यह पैदल चलने लगे, तो उसे रेंगने की रफ़्तार में लाया जा सकता है।
और जब पानी रेंगने लगेगा, तो उस पानी को धरती के पेट में डाला जा सकेगा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में समस्या के समाधान के लिये नदियों के पानी को जोड़ने की बात चल रही थी। क्या इससे समाधान संभव है?
भारत में, संविधान के अनुसार, पानी के अधिकार तीन स्तरों पर हैं।
सबसे पहला पानी का अधिकार है नदियों का बहाव, जो भारत सरकार तय करती है।
दूसरा है बरसात का पानी, जिसके अधिकार राज्य सरकार के पास हैं।
तीसरा, पंचायत और नगरपालिका के अपने-अपने क्षेत्रों में बरसात के पानी पर उनका अधिकार होता है।
ये तीनों स्तर हमेशा अलग रहेंगे।
आज देश का कोई भी मुख्यमंत्री नहीं कहेगा कि उसके पास पानी ज़्यादा है।
तो फिर कोई भी सरकार कैसे कह सकती है कि नदियों को जोड़ा जायेगा और सबको पानी दिया जायेगा।
क्या यह सच है कि हम 100 साल पहले के मुकाबले छः गुना ज़्यादा पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं?
हमारे जीने का अंदाज़ बदल गया है।
100 साल पहले जब मनुष्य शौच या पेशाब के लिये जाता था, तो वो कभी 15 लीटर पानी बर्बाद नहीं करता था।
अब जब हम टॉयलेट जाकर फ़्लश करते हैं, हम हर फ़्लश में 6 लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं।
यानि कि पानी के इस्तेमाल का तरीका पिछले 100 सालों में ख़राब हो गया है।
पहले, मनुष्य अनुशासन के साथ पानी का इस्तेमाल करता था, ऐसा अब नहीं है।
भारत पानी से जुड़े अनुशासन में दुनिया का गुरू था।
हमारे घर मेहमान आने पर हम उन्हें पानी देते हैं, यूरोप की तरह शराब नहीं।
पानी का सम्मान करना हमारी संस्कृति का हिस्सा है।
हमने हमेशा इसे भगवान का दर्जा दिया है।
दुर्भाग्यवश, जब से हम अपने भगवान को ईंट-पत्थर के घरों में ताले में बंद रखने लगे, तभी से पानी का दुरुपयोग शुरू हुआ।
पानी का यह दुरुपयोग बहुत ही ख़तरनाक है।
फोटो: महिलाऍं पानी से भरे मटकों के साथ।
कहा जा रहा है कि भारत में पानी की मांग 2030 तक चरम सीमा पर पहुंच जायेगी। क्या यह सच है?
हाँ, पानी की मांग बढ़ती जा रही है।
समय के साथ-साथ यह मांग और भी बढ़ेगी।
उतने पानी के लिये हमें अपनी ज़िंदग़ी में 6 उपाय अपनाने होंगे - सम्मान, कमी, छोड़ना, पुनर्चक्रण करना और पानी से प्रकृति को नया जीवन देना।
भारत की यह स्वदेशी सोच पानी की गहरी समझ पर आधारित है।
हम एक नियम का पालन करते थे, कि हम ज़िंदग़ी भर में जितने पानी का इस्तेमाल करेंगे, मरने से पहले उतना प्रकृति को लौटा कर जायेंगे।
इसलिये हम कम पानी का इस्तेमाल करते थे।
शहर में चार लोगों के परिवार में पानी की खपत कितनी होनी चाहिये?
अगर हम बड़े पैमाने पर इंग्लिश टॉयलेट बनाये जायेंगे, तो हम एक व्यक्ति के लिये 40 लीटर की अधिकतम सीमा से काम नहीं चला पायेंगे।
लेकिन अगर हम 6 उपायों के सिद्धांत को अपने जीवन में लागू करें, तो 40 लीटर पानी एक आदमी के लिये काफ़ी होगा।
चार लोगों के परिवार के लिये 160 लीटर पानी काफ़ी है।
कम पानी का इस्तेमाल करने के लिये, हमें अपनी जीवनशैली बदलनी होगी।
दुर्भाग्यवश आज हमारा समाज सरकार से पानी मांगता है।
जबकि समाज अपने लिये पानी की व्यवस्था करना भूल चुका है।
पुराने दिनों में, कोई भी राजा अपनी प्रजा को पानी नहीं देता था।
राजा, महाजन (शिक्षित लोग) और आम जनता साथ मिलकर सुनिश्चित करते थे कि समाज में पर्याप्त पानी हो।
कम पानी का इस्तेमाल एक समाजवादी विचारधारा है, जबकि खपत पूंजीवाद की हक़ीकत है।
भारत में, पहले ट्रस्टी सिस्टम हुआ करता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के साथ भारत में पूंजीवाद लेकर आयी।
आज नागपुर में, वेयोलिया इंडिया नामक फ्रेंच कंपनी पानी प्रदान कर रही है। यह एक प्राइवेट कंपनी है।
जब मैंने नागपुर के स्थानीय नेताओं से बात की, तो उन्होंने बताया कि वेयोलिया इंडिया सिर्फ ग्राहकों को पानी से जुड़ी सेवाऍं प्रदान कर रही है।
नेताओं की ज़ुबान बदलना अच्छा संकेत नहीं है।
वेयोलिया इंडिया अब भारत के 18 शहरों में पानी देना चाहती है। जल्द ही देश के पानी पर इन लोगों का कब्ज़ा होगा।
मैं पानी के इस निजीकरण के ख़िलाफ़ लड़ना चाहता हूं।
लेकिन जब बरसात होती है, तो लोग सूखे को भूल जाते हैं।
मैं नहीं भूलता, सिर्फ नेता भूलते हैं।
भविष्य में सत्ता का खेल पानी के मुद्दे पर खेला जायेगा।
आप देखते जाइये, मल्टीनेशनल कंपनियाँ इसमें बड़ी भूमिका निभाने वाली हैं।